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Showing posts from 2017

-ब्रायन ट्रेसी के मोटिवेशनल कोट्स

ब्रायन ट्रेसी का जन्म 5 जनवरी 1944 एक कनाडाई-अमरीकन आत्म-विस्वास और प्रेरक सार्वजानिक वक्ता और लेखक है वह सत्तर से अधिक पुष्तकों के लेखक हैं ,जिनका दर्जनों भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। उनकी लोकप्रिय पुस्तकें ,अर्न व्हाट यू आर रियली ,इट दैट फ्रॉग! और द साइकोलॉजी ऑफ़ अचीवमेंट है आइये इनके मोटिवेशनल विचारों को जानते हैं।-ब्रायन ट्रेसी के  मोटिवेशनल कोट्स 1 जिंदगी में कॉम्बिनेशन लॉक जैसी जैसी होती है ,बस इसमें अंक ज्यादा होते हैं। अगर आप सही क्रम में सही नंबर घुमाएंगे तो ताला खुल जायेगा। ब्रायन ट्रेसी मैंने पाया है की भाग्य की भविष्यवाणी की जा सकती है। यदि आप अधिक भाग्य चाहते हैं ,तो ज्यादा जोखिम लें। ज्यादा सक्रीय बनें। ज्यादा बार नजर में आएं। ब्रायन ट्रेसी यहाँ नौकरी के क्षेत्र में सफलता पाने का तीन हिस्सों का सरल फार्मूला बताया जा रहा है : थोड़ी जल्दी आएं ,थोड़ी ज्यादा मेहनत से काम करें और थोड़ी ज्यादा देर तक ऑफिस में रुकें। इस फॉर्मूले का पालन करने पर आप अपने प्रर्तिस्पर्धाओं से आगे निकल जाएंगे की वे आपकी बराबरी नहीं कर पाएंगे। ब्रायन ट्रेसी सेल्सपर्सन ,उद्दमी य

नववर्ष 2018 में खुद को बदलने का संकल्प

नववर्ष 2018 में खुद को बदलने का संकल्प- एक कर्मचारी था ,जिसकी हमेशा शिकायत करने की आदत थी। हर समय उसके उसके मुँह पे किसी बात की शिकायत रहती थी ,अपनी नौकरी के बारे में ,अपने पडोसी के बारे में। सोमवार की दोपहर का भोजन को करने सभी कर्मचारी एक साथ बैठे तो वो अपने साथ लाये भोजन को निकाला तो उसके टिफिन से सैंडविच वेज निकला ,वेज सैंडविच को अजीब नजरों से देखा और खा लिया। मंगलवार को फिर से दोपहर में टिफिन से उसके सैंडविच निकला ,फिर से वही अजीब सी प्रतिकिर्या ,लेकिन आज फिर से खा लिया।  बुधवार  फिर से दोपहर में जब सभी खाने के लिए बैठे हुए थे वो फिर अपना टिफिन खोला तो उसमें से फिर से वेज सैंडविच , आज वो प्रतिकिर्या के साथ-साथ  बुदबुदाया -ये क्या रोज रोज सैंडविच उफ़! ये बोलकर बुझे मन से  फिर से खा लिया। गुरुवार को कुछ दूसरे चीज की उम्मीद से टिफ़िन खोला , तो दोबारा से आज फिर से सैंडविच -वो चिल्ला उठा अब अगर दोबारा सैंडविच मैंने अपने टिफ़िन में देखा तो  आत्महत्या कर लूंगा ,लेकिन अब सैंडविच नहीं खाऊंगा। उसके पास बैठे कर्मचारी ने कहा- दोस्त अपने पत्नी को क्यों नहीं कहते की मुझे वेज सैंडविच

रोबीला व्यक्तित्व बनाये रखें

सार्थक और सम्यक दो भाई थे और दोनों भाई का अलग-अलग स्वभाव था। सार्थक बहुत  गुस्सैल जबकि सम्यक बहुत शांत। सार्थक रोजाना किसी न किसी झगड़ा कर आता था ,जबकि सम्यक अक्सर अपने साथियों के बिच हंसी का पात्र बना रहता था। जब कभी सार्थक झगड़ कर आता था तो सम्यक उसे समझाता था -तुम बहुत गुस्सैल हो तुम्हे शांत होना चाहिए ,कोई कुछ बोले तो सुन लेना चाहिए ,जवाब देने से कुछ नहीं होगा।  वहीँ जब कभी सम्यक उदास होकर घर आकर लौट आता तो उसे सार्थक समझाता -भाई सीधे-सादे बने रहोगे ,तो डांट कर कोई भी चला जायेगा , तुम्हे मेरी तरह गुस्सैल होना चाहिए ,किसी ने जैसे ही कुछ बोलै उसका मुहतोड़ जवाब देना चाहिए।   दोनों भाइयों की बात एक दिन उसके पिता ने सुनी तो उनके पिता ने उन दोनों को समझने के मकसद से एक कहानी सुनायी। एक जंगल में भयंकर सर्प रहता था। उसके आतंक के कारण कोई वहां जाता नहीं था। एक दिन उस जंगल से एक ऋषि मुनि गुजर रहे थे ,जैसे ही सर्प ने ऋषि को देखा तो उनकी तरफ लपका और काटना चाहा ,परन्तु ऋषि मुनि ने अपने योग बल से उस पर विजय पा ली। सर्प बोलै-क्षमा कीजिये महाराज मैं आपकी शरण में हूँ ,मुझसे भूल हुई है।

हार के आगे जीत की कहानी

हार के आगे जीत की कहानी - होंडा - होंडा कंपनी के संस्थापक सोइचिरो होंडा ने जिंदगी के कई मोड़ पे असफलता देखी। उन्होंने जब टोयोटा कंपनी में इंटरव्यू दिया था तो उन्हें असफल घोसित किया गया था। वे गरीबी में पीला-बड़े ,पिता को साइकिल-रिपेयर की छोटी सी दुकान थी। उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी ,16 वर्ष की उम्र में वे टोकियो पहुंचे। वहां पे अप्रेंटिशिप के लिए आवेदन दिया ,उम्र एक वर्ष कम थी ,इसलिए उन्होंने कंपनी मालिक के घर में एक साल काम किया। बाद में एक साल कंपनी मालिक घर पे काम करने के वावजूद अप्रेंटिशिप भी न मिली।  फिर निराश होकर गॉव पहुंचे। जल्द ही उन्होंने निराशा छोड़कर रिपेयरिंग की छोटी दूकान खोली। कई दिनों तक वहीँ काम किया आगे कुछ ही दिनों में कई पार्ट्स जोड़कर मोटरसाइकल बना दी। यह  मोटरसाइकल   की सबसे बेहतरीन मोटरसाइकल मणि गई थी। फिर इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। न्यूटन -किसी भी स्कूली छात्र के मुँह पहले वैज्ञानिक के तौर पर न्यूटन का नाम आता है। न्यूटन बचपन में ठीक से नहीं पद पाए थे। उनकी माँ ने दुरी सदी की थी इसलिए वे अकेलापन महसूस करते थे किसी तरह बी.ए.पड़ने म

AKBAR BIRBAL STORY

AKBAR BIRBL STORY

गुलाब

आज मैं गुलाब लेने दुकान गया वहां पे मैंने जब गुलाब लिया तो मैंने दुकानदार से कहा भाई आप इसके कांटे हटा कर देना बढ़िया से पैक कर दो। फिर मैं सोंचने लगा की जब एक निर्जीव के काँटों को स्वीकार नहीं करते हैं तो फिर हम किसी सजीव के काँटों को स्वीकार कर सकते हैं ? कांटें तो सच में किसी को भी पसंद नहीं होता। आप यदि किसी के पास जाकर अपने काँटों (दुःख ,गुस्सा ,इत्यादि )को दिखने की कोसिस करेंगे तो क्या लगता है आपको जब आप और हम गुलाब के काँटों के साथ गुलाब को स्वीकार नहीं करते हैं तो कोई कैसे हमें काँटों के साथ स्वीकार कर सकता है ? सभी खिला हुआ ताजा गुलाब पसंद है अर्थात सभी को हँसता हुआ चेहरा ही पसंद है ,चाहे आपको कितनी तकलीफ है उस से कोई मतलब नहीं दुनिया को। एक और चीज मैंने सीखी की आपमें चाहे कांटे कितनी भी पर आप गुलाब की तरह खिल सकते हैं ,मुस्कुरा सकते हैं तो आपको लोग आपको भी आपके कांटे को साफ करके अपने पास रख सकते हैं। लोग को नकरात्मक भाव पसंद नहीं,नकरात्मक बातें पसंद नहीं हैं तो फिर आप लोगों के साथ नकरात्मक बात न करें क्यूंकि गुलाब के कांटे तो सिर्फ शरीर को तकलीफ देते हैं लेकिन आप

ठंडी रोटी

एक लड़का था माँ ने उसका विवाह करा दिया था ,परन्तु कुछ कमाता नहीं था। माँ जब भी उसको रोटी परोसती थी ,तब वह कहती थी की बेटा -ठंढी रोटी खा लो। लड़के के समझ में नहीं आता था की माँ ऐसा क्यों कहती है  जबकि रोटी तो गरम है ,खैर उसको क्या उसको खाने से मतलब रहता था सो वो चुपचाप खा लेता।  कई दिन बित गए,एक दिन उसकी माँ किसी काम से बाहर गई तो जाते समय अपनी बहु (उस लड़के की स्त्री )-को कह गई की जब भी लड़का उसका खाने के लिए आये तो उसे रोटी परोस देना। रोटी परोस कर कह देना की ठंढी रोटी खा लो। उसने अपने पति से वैसे ही कह दिया तो वह चीड़ गया की माँ तो कहती ही थी तुम भी सिख गई। बता रोटी ठंडी कैसे हुई ? रोटी गरम है ,दाल गरम है ,साग  गरम है फिर तू ठंडी रोटी कैसे कहती हो ? वह बोली यह तो आप अपनी माँ से पूछो उन्होंने मेरे को बोला है बोलने को इसलिए मैंने आपसे बोला। वह गुस्से से आग-बबूला हो गया की माँ तो पहले कहती ही थी तू भी सिख गई और वो खाना नहीं खाया। माँ घर आई तो उसने बहु से पूछा क्या लड़के ने भोजन कर लिया ? वो बोली (बहु ) की उन्होंने तो भोजन किया नहीं उलटे नाराज हो गए ! माँ ने लड़के से पूछा तो लड़के ने

4 BASIC STEPS

हे भगवान्  मैं नेटवर्कर नहीं बनना नहीं चाहता था। लेकिन थैंक्स गॉड मैं नेटवर्कर बन गया क्यूंकि मैं आज मेरे पास सकरात्मक विचार है ,मानशिक शांति है ,स्वास्थ्य है ,सम्मान है ,पहचान है और पैसा भी। मैंने  जितने भी नेटवर्कर को देखा है सभी सफल नेटवर्कर धन-संपत्ति को सबसे अंत में रखते हैं अपने सभी उपलब्धियों में , क्यों रखते थे मुझे शुरुआत में पता नहीं चलता था क्यूंकि मुझे तो लगता था पैसा ही सबसे मत्वपूर्ण होता है पर आज मैं जिस मुकाम पे हूँ मुझे लगता है अगर आपके पास सेल्स के बारे आपके पास उचित ज्ञान हो तो आपके लिए भी यहाँ सफलता पाना बहुत आसान हो जायेगा और आप हमारी बात से सहमत हो जायेंगे।  अगर गाना एक कला है ,नाचना एक कला है ,अभिनय एक कला है उसी तरह बेचना भी एक कला है और सभी अन्य कलाओं की तरह भी।  अगर आपने गाना सीखा नहीं क्या आप गा सकते हैं ? आपने नाचना सीखा नहीं क्या आप नाच सकते हैं तो बिना सीखे आप बेच कैसे सकते हैं ,आपको कुछ भी बेचने के लिए सीखना पड़ेगा।  अब वैसे भी नेटवर्किंग सेक्टर में सफलता पाना पहले की उपेक्षा बहुत आसान हो गया है क्यूंकि आज के समय में आप यदि थोड़ा अपने एरिया म

गीता श्लोक -।।१३।।

गीता श्लोक - ।।१३।। देहिनःअस्मिनयथा  देहे कौमारं यौवनं जरा।  तथा देहान्तरप्राप्तिः धीरः तत्र न मुह्यति।।१३।। देहिनः = देहधारी , अस्मिन =इस , देहे =मनुसयशरीर में , यथा =जैसे , कौमारं=बालकपन , यौवनम =जवानी(और) , जरा= वृद्धा अवस्था (होती है ) , तथा =ऐसे ही , देहान्तरपराप्तिः = दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है।  तत्र = उस विषय में , धीरः=धीर मनुष्य , न मुह्यति = मोहित नहीं होता।   अर्थात- देहधारी के इस शरीर में जैसे बालकपन , जवानी (और) वृद्धा अवस्था ( होती है ) ऐसे ही दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। उस विषय में धीर मनुष्य मोहित नहीं होता है। देहिनःअस्मिनयथा  देहे कौमारं यौवनं जरा- शरीरधारी के शरीर में पहले वाल्यावस्था आती है ,फिर युवास्था आती है ,और फिर वृद्धावस्था आती है। तात्पर्य है की शरीर में एक अवस्था नहीं रहती ,उसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। यहाँ शरीरधारी इस शरीर में- ऐसा कहने से सिद्ध होता है की शरीरी अलग और शरीर अलग है। तथा देहान्तरप्राप्तिः -जैसे शरीर की कुमार ,युवा अदि अवस्थाएं होती है ,ऐसे ही देहान्तर की अर्थात दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। जैसे स्

गीता श्लोक ।।१२।।

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं न इमे जनाधिपाः ।  न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः  परम।।१२।। जातु              =किसी काल में                             न,तू,एव           = यह बात नहीं थी। अहम्            =मैं                                               च                    = और न                  =नहीं                                           अतः                 =  इसके आसम          =था (और )                                    परम                = बाद (भविष्य ) में न                  =नहीं (था)                                     वयम               =(मैं ,तू,और राजालोग-)हम इमे               =(तथा ) ये                                     सर्वे                  = सभी जनाधिपाः     =राजालोग                                     भविष्यामः         =रहेंगे                                                                          एव                   = (यह बात ) भी। हिंदी रूपांतरण-    किसी काल में मैं नहीं था (और) तू नहीं (था ) (तथा ) ये राजालोग नहीं (थे) यह बात भी नहीं है ;और इस

गीता श्लोक ।। ११।

नमस्कार दोस्तों , नया साल आने वाला है और आप अपने सेज सम्बन्धियों को कुछ गिफ्ट देना चाहते हैं तो अमिन कहूंगा इस साल कुछ अलग गिफ्ट दे आप उन्हें गीता   की पुस्तक दें। आप हिंदी या अंग्रेजी में लेना चाहे निचे लिंक दिया गया आप निचे लिंक से खरीद सकते हैं। आप भी अपने आपको गीता गिफ्ट करें। इसमें जिंदगी असली सच्चाई बताई गई,आप चाहे कुछ भी करते हों आज के समय के लिए बहुत उपयोगी पुस्तक है ,इसको अवश्य पड़ें। गीता श्लोक -  ।। ११।। अध्याय  -२  असोच्यान अन्वसोचः च त्वं प्रज्ञावादान च भाषसे।  गतासून अगतासून न अनुशोचन्ति पण्डिताः।। ११।।           श्री भगवान बोले- त्वं =                   = तुमने।                                       भाषसे           = कह रहे हो (परन्तु )           असोच्यान           =शोक न करने योग्य का।              गतासून         = जिनके प्राण चले गए अन्वसोचः           = शोक किया है।                                                  हैं ,उनके लिए  च                       = और।                                          च                 =और  प्रज्ञावादान          =

ध्येय सफलता का रास्ता है

क्या आपके पास ध्येय है ? आपका कोई ध्येय होना चाहिए क्यूंकि बिना किसी गंतव्य के उस पर पहुँचना उसी तरह मुश्किल है जिस तरह किसी जगह पर बिना जाये वहाँ से वापिस आना। जब तक आपके अंदर कोई निश्चित ,असंदिग्ध व स्पष्ट रूप से निर्धारित लक्ष्य नहीं है ,आप अपने अंदर निहित अधिकतम सम्भवता को अनुभव नहीं कर सकते। अनिश्चितता के साथ भटकने से इसे आप पा नहीं सकते , इसके लिए आप में सार्थक का विशिष्टता का होना जरुरी है। आपका अपने और अपने ध्येय के बारे में  में क्या विचार है ? क्या वे स्पष्ट हैं या धुंधले हैं ? गतिविधि में कार्य सम्पन्नता का भ्रम पाल लेना - एक वैज्ञानिक ने एक गुलदस्ते के चारों ओर इन्हें बड़ी सावधानी से इस प्रकार व्ययस्थित किया की सबसे आगे वाली तितली सबसे पीछे वाली को छूती हुई पूरा एक वृत्त बना रही थी गुलदस्ते के के केंद्र में उसने चीड़ का फल रखा जो की तितलियों का आहार है। तितलियाँ उस गुलदस्ते का चक्कर लगाने लगी। घंटे ,दिन और रात गुजरते गए और वो चक्कर लगाती रही।  पुरे सात दिन वो सातों दिन और सात रातों तक वे उस गुलदस्ते के चारों  ओर घूमती रही। अंत में वे भूख और थकान के कारण चूर होकर मर

BECOME A CONNECTOR

BECOME A CONNECTOR DETECTOR आप 100% कभी नहीं होंगे अभी शुरुआत करें  चलने का  रास्ते में कठिनाइयां तो आएँगी  चाहे आपने 100 % तयारी की है तब भी  और यदि आपने कोई तयारी नहीं की है तब भी । हर किसी व्यक्ति का इम्मोशनल कनेक्टर होता है , उनका बिज़नेस तो लॉजिकल होता है लेकिन  व्यक्ति इम्मोशनल होता है और आपको भी इम्मोशनल बनना चाइये।  हर व्यक्ति का कुछ न कुछ का कनेक्टर होता है। जिसे आप छूते  कनेक्ट हो जायेंगे। जैसे की आप मान लो की नया बढ़िया टीवी आपने अपने घर पे लाया है ,आपने स्टैब्लिस्ज़ेर बगैरा सबकुछ लगा दिया पर जब तक आप टीवी के प्लग को सॉकेट में डालना पड़ेगा तभी तो टीवी ऑन होगा ,क्योंकि प्लग को सॉकेट में डालते ही करंट पास होना सुरु हो जाता है वही करंट माध्यम बन जाता है एक दूसरे को जोड़ने का। उसी तरह हर व्यक्ति का एक इम्मोशनल कनेक्टर होता है उसे छूने से पकड़ने से आपका सम्बन्ध जल्दी बन जाता है। बिना सम्बन्ध के आप किसी को कुछ भी बेच नहीं सकते हैं ,हाँ ये अलग बात है की वो आपसे खरीद सकता है। अगर कोई व्यक्ति आपके सामने आकर प्रोब्लेम्स के बारे में कह रहा है इसका मतलब ये हुआ की व

कड़वे प्रवचन #1

श्री श्री मुनि श्री तरुण सागर जी कहते हैं की जब आप बोलो मीठा बोलो मीठा बोलो और कड़वा तो मेरे लिए छोड़ दो आप क्यों कड़वा बोल कर अपनी जिंदगी में कडवाहठ घोलते हो ? ये कहते हैं आप जब भी खाना खाओ कमसे कम एक घंटे के लिए मौन रहो। चाहे आपके खाने में नमक ज्यादा हो या हो ही न ,पर मौन होकर चुपचाप खा लो। इस से घर में कलह कम हो जायेगा क्यूंकि जब आपकी पति उस खाने खाएंगी आपके ऑफिस चले जाने के बाद तो मन ही मन कितना दुआएं देंगी आपको ,आहा ! कितना देवता जैसा पति मिला है की नमक इतना जायदा मैंने डाल दी थी फिर भी कुछ नहीं बोला मन ही मन आपके कृतज्ञ हो जाएगी। आपको दिल से दुआएं देते नहीं थकेंगी।  और आप सोंच कर देखो यदि आप खाने के लिए बैठे हों और और आपको पता चला की नमक जयदा है और बोल दिया आपकी की भाग्यवान नमक कितना ज्यादा है खाने में ,आपने भले ही प्यार से बोला पर हो सकता है की उसका मूड ख़राब हो और फिर बात का बतंगड़ होते देर नहीं लगेगी। और ऐसे ही छोटी छोटी बातों को लेकर ही आपस में पति -पत्नी के बिच अकसर झगडे होते हैं। जो बाद में विकराल रूप ले लेता है  आप मीठा बोलें। . जिंदगी में माँ , महतमा और परमात्म

ए पी जे अब्दुल कलाम

नाम ऐ पी जे अब्दुल कलाम जन्म   15 अक्टूबर  1931 रामेस्वरम , तमिलनाडु , भारत   मृत्यु  नागरिकता   भारतीय   क्षेत्र   विज्ञानं अवं प्रौद्योगिकी उपलब्धि     11 th  राष्ट्रपति भारत के " मिसाइल    मन    ऑफ़    इंडिया  "  के   नाम   से   जाने   जाते   हैं  ,   भारत   के   भूतपूर्व   राष्ट्रपति  ,  भारत    रत्ना   से   नवाजित   . एक   बेहद   गरीब   परिवार   से   होने   के   बावजूद   अपनी   मेहनत   और   समर्पण   के   बल   पर   बड़े   से   बड़े   सपनो   को   साकार   करने   का   एक   जीता - जागता   प्रमाण   हैं   अब्दुल   कलाम          अब्दुल कलाम    क्या हम यह नहीं जानते कि आत्म सम्मान आत्म निर्भरता के साथ आता है ? अब्दुल कलाम   कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये .   - अब्दुल कलाम   अंग्रेजी आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में विज्ञान के मूल काम अंग्रेजी में हैं . मेरा विश्वास है कि अगले दो दशक में विज्ञान के म

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नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी

आज 21 वी सदी का सबसे क्रन्तिकारी तरीका है नेटवर्क मार्केटिंग है। लेकिन लोगों के मन में बहुत से सवाल होते हैं इन कंपनियों को लेकर। लेकिन मैं आपको बता देना चाहता हूँ की सच में नेटवर्क मार्केटिंग एक बहुत ही शानदार और बिज़नेस की तरह ही है जिसे आप बहुत कम इन्वेस्टमेंट के साथ शुरुआत कर सकते हैं। इस बिज़नेस की खास बात यह है की आपको जो भी चैलेंज आने वाला है पहले ही पता चल जाता है और परिणाम भी। नेटवर्क मार्केटिंग कम्पनी आज के समय की जरुरत है क्यूंकि आपको पता है जॉब की मारामारी और यदि आपका कैसे करके लग भी जाये तो बॉस जीना हराम कर देता है। तो यदि आपको समय की आजादी और पैसे की आजादी चाहिए तो आपको अपना नेटवर्क बनाना पड़ेगा। और नेटवर्क बनाने के लिए आपको सीखना पड़ेगा। चेतावनी -एक महत्वपूर्ण बात इसमें भी और बिज़नेस की तरह ट्रेनिंग की जरुरत होती है और उसके बाद भी अन्य व्यवसाय के तरह ही कोई गरंटी नहीं होती है की आप सफल हो ही जाएँ। स्कोप इन इंडिया -अगर मैं भारत में बात करें तो बहुत कम लोग नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी में जुड़े है अगर एक सर्वे के अनुसार और एक किताब में छपे लेख के अनुसार भार

विज्युलाइजेशन से वजन घटाया

आप इसे विज्युलाइजेशन  दौरान जब आप अल्फा लेवल पर जाकर यह स्क्रिप्ट जो निचे दिया जा रहा है उसे आप मन में दोहराएं। विज्युलेशन बहुत ही प्रभावकारी होता है। आप विज्युलाइजेशन  सुबह या शाम में कर सकते हैं। या फिर आप सफर के दौरान भी कर सकते हैं। आज विज्युलाइजेशन वजन घटाने के लिए है। मेरे सामने आइना है। आईने में,मैं दीखता हूँ। वाह ! वाह ! वाह ! किसी कितने आश्चर्य की बात है। किसी समय  मानना था की मेरा वजन घट नहीं सकता है लेकिन आज वास्तविकता मेरे सामने है ,उपयुक्त वजन के साथ मेरा शरीर आईने में दिख रहा है। पेट ,कमर, कंधे ये सभी जितने होने चाहिए थे एक सामन्य वजन के मुताबिक ही हैं। मैं अपने पैरों के निचे वजन का कांटा देख सकता हूँ मेरा वजन उतना ही दिखाई दे रहा है जितना मेरे उम्र और आयु के हिसाब से होना चाहिए था।  वजन तोलने की मशीन में कांटा स्पष्ट दिखाई दे रहा है। ( कुछ समय के बाद ) मैं अपने काम में व्यस्त हूँ ,मेरा काम बहुत स्फूर्ति से कर रहा हूँ। शीघ्रता से और स्फूर्ति से काम करने में आनंद आ रहा है। मेरा शरीर बिलकुल नया और बिलकुल हल्का महसूस हो रहा है। मेरा वजन कम होने से काम की गति भी बढ़ ग

अजीम प्रेम जी विप्रो संस्थपक एशिया के सबसे बड़े दानवीर

अजीम प्रेमजी विप्रो संस्थपक  एशिया के सबसे बड़े दानवीर  ने दान किए 52,750 करोड़ भारत सरकार ने जब कोरोना से युद्ध लड़ने के लिए मदद मांगी तो उन्हों ने दान किए 52,750 करोड़ रुपये, अब तक 145,000 करोड़ दान दे चुके हैं , अजीम प्रेमजी  जन्म 25 जुलाई 1945 में करांची में हुआ था। उनको १९६६ में कैलिफोर्निआ की स्टैण्डर्ड यूनिवर्सिटी  कम्प्यूटर की पढाई  छोड़कर भारत लौटना पड़ा। उनके पिताजी ने उन्हें 7 करोड़ की कंपनी विरासत में दी थी ,जो वनस्पति घी ,और कपडे धोने का साबुन बना रही थी।  21 साल की उम्र में प्रेमजी को बिलकुल अनुभव नहीं था ,वो खुद भी साक्षात्कार में  -मैं इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। मेरे पास एक ही स्वप्न था की मुझे एक बड़ी कंपनी बनानी है। उन्होंने अपने घी, तेल साबुन बनाने  व्यवसाय में वृद्धि की साथ ही एक बड़ी कम्पनी बनाने का सपने के साथ 1980 में आई टी क्षेत्र में प्रवेश किया। 1991 में उनको जब्बरदस्त मौका मिला। भारत सर्कार ने अमेरिका की आई बी ऍम कम्पनी भारत में व्यापार करने पर प्रतिबन्ध रख दिया। एक बिज़नेस मैन नाते अजीमप्रेम जी यह मौका हाथ से गवाना नहीं चाहते थे। उनको पता था की