ब्रायन ट्रेसी का जन्म 5 जनवरी 1944 एक कनाडाई-अमरीकन आत्म-विस्वास और प्रेरक सार्वजानिक वक्ता और लेखक है वह सत्तर से अधिक पुष्तकों के लेखक हैं ,जिनका दर्जनों भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। उनकी लोकप्रिय पुस्तकें ,अर्न व्हाट यू आर रियली ,इट दैट फ्रॉग! और द साइकोलॉजी ऑफ़ अचीवमेंट है आइये इनके मोटिवेशनल विचारों को जानते हैं।-ब्रायन ट्रेसी के मोटिवेशनल कोट्स 1 जिंदगी में कॉम्बिनेशन लॉक जैसी जैसी होती है ,बस इसमें अंक ज्यादा होते हैं। अगर आप सही क्रम में सही नंबर घुमाएंगे तो ताला खुल जायेगा। ब्रायन ट्रेसी मैंने पाया है की भाग्य की भविष्यवाणी की जा सकती है। यदि आप अधिक भाग्य चाहते हैं ,तो ज्यादा जोखिम लें। ज्यादा सक्रीय बनें। ज्यादा बार नजर में आएं। ब्रायन ट्रेसी यहाँ नौकरी के क्षेत्र में सफलता पाने का तीन हिस्सों का सरल फार्मूला बताया जा रहा है : थोड़ी जल्दी आएं ,थोड़ी ज्यादा मेहनत से काम करें और थोड़ी ज्यादा देर तक ऑफिस में रुकें। इस फॉर्मूले का पालन करने पर आप अपने प्रर्तिस्पर्धाओं से आगे निकल जाएंगे की वे आपकी बराबरी नहीं कर पाएंगे। ब्रायन ट्रेसी सेल्सपर्सन ,उद्दमी य
गीता श्लोक - ।।१३।। देहिनःअस्मिनयथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिः धीरः तत्र न मुह्यति।।१३।। देहिनः = देहधारी , अस्मिन =इस , देहे =मनुसयशरीर में , यथा =जैसे , कौमारं=बालकपन , यौवनम =जवानी(और) , जरा= वृद्धा अवस्था (होती है ) , तथा =ऐसे ही , देहान्तरपराप्तिः = दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। तत्र = उस विषय में , धीरः=धीर मनुष्य , न मुह्यति = मोहित नहीं होता। अर्थात- देहधारी के इस शरीर में जैसे बालकपन , जवानी (और) वृद्धा अवस्था ( होती है ) ऐसे ही दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। उस विषय में धीर मनुष्य मोहित नहीं होता है। देहिनःअस्मिनयथा देहे कौमारं यौवनं जरा- शरीरधारी के शरीर में पहले वाल्यावस्था आती है ,फिर युवास्था आती है ,और फिर वृद्धावस्था आती है। तात्पर्य है की शरीर में एक अवस्था नहीं रहती ,उसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। यहाँ शरीरधारी इस शरीर में- ऐसा कहने से सिद्ध होता है की शरीरी अलग और शरीर अलग है। तथा देहान्तरप्राप्तिः -जैसे शरीर की कुमार ,युवा अदि अवस्थाएं होती है ,ऐसे ही देहान्तर की अर्थात दूसरे शरीर की प्राप्ति होती है। जैसे स्