ब्रायन ट्रेसी का जन्म 5 जनवरी 1944 एक कनाडाई-अमरीकन आत्म-विस्वास और प्रेरक सार्वजानिक वक्ता और लेखक है वह सत्तर से अधिक पुष्तकों के लेखक हैं ,जिनका दर्जनों भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। उनकी लोकप्रिय पुस्तकें ,अर्न व्हाट यू आर रियली ,इट दैट फ्रॉग! और द साइकोलॉजी ऑफ़ अचीवमेंट है आइये इनके मोटिवेशनल विचारों को जानते हैं।-ब्रायन ट्रेसी के मोटिवेशनल कोट्स 1 जिंदगी में कॉम्बिनेशन लॉक जैसी जैसी होती है ,बस इसमें अंक ज्यादा होते हैं। अगर आप सही क्रम में सही नंबर घुमाएंगे तो ताला खुल जायेगा। ब्रायन ट्रेसी मैंने पाया है की भाग्य की भविष्यवाणी की जा सकती है। यदि आप अधिक भाग्य चाहते हैं ,तो ज्यादा जोखिम लें। ज्यादा सक्रीय बनें। ज्यादा बार नजर में आएं। ब्रायन ट्रेसी यहाँ नौकरी के क्षेत्र में सफलता पाने का तीन हिस्सों का सरल फार्मूला बताया जा रहा है : थोड़ी जल्दी आएं ,थोड़ी ज्यादा मेहनत से काम करें और थोड़ी ज्यादा देर तक ऑफिस में रुकें। इस फॉर्मूले का पालन करने पर आप अपने प्रर्तिस्पर्धाओं से आगे निकल जाएंगे की वे आपकी बराबरी नहीं कर पाएंगे। ब्रायन ट्रेसी सेल्सपर्सन ,उद्दमी य
आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे एक महान शख्सियत का जो की विश्व की विश्व की सर्वाधिक बिक्री होने वाली पुस्तक ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम के लेखक हैं ,बताइये कौन ? गैलिलिओ ,न्यूटन एवं आइंस्टाइन के समकक्ष प्रतिभा का वैजानिक हैं ,उनका नाम बताइये ? उनका नाम है डॉ स्टीफन हॉकिंग। एक संघर्ष भरी सच्चे हीरो की कहानी।
डॉ स्टीफन हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी 1942 में और उनकी मृत्यु 14 मार्च 2018 में हुआ। 21 वर्ष की उम्र में ही दो मोटर न्यूरोजन डिजीज के शिकार हो गए जो की लकवे से भी खतरनाक बीमारी थी। यह रोग व्यक्ति के शारीरिक शक्ति को धीरे-धीरे कमजोर करता रहता है। सभी अंग धीरे-धीरे कमजोर होते चले जाते हैं।
हॉकिंग 30 व्हील चेयर में कैद थे। वे स्पीच सिन्थेसाजिर की मदद से बोलते हैं। जिसको उनके लिए एक विशेष कंपनी ने तैयार किया था। भले ही व्हील पे हों ,अंग क्षीण हो गए थे लेकिन मानसिक शक्ति पे उनका हमेशा अधिपत्य बना रहा।
हॉकिंग ने आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत को कवान्टम सिद्धांत के साथ मिलाया एवं बताया की ब्रह्माण्ड की संरचना किस प्रकार हुई। दोस्तों ,कितने आश्चर्य की बात की जिस व्यक्ति की शरीर की संरचना गड़बड़ा गई हो ,वह वयक्ति ब्रह्माण्ड की संरचना की खोज कर रहा है। समस्त विश्व में विज्ञान एवं ब्रह्माण्ड के रहस्य पर व्याख्या देने जाते हैं।
जनवरी 2001 में स्टीफन हॉकिंग भारत आये थे तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया वालों ने साक्षात्कार , ईश्वर डोर नहीं खींचता के के नाम से छापा था ,जिसमें पत्रकार ने जब पूछा-आप बीमारी के बाद कैसा महसूस करते हैं उनके जवाब में उन होने कहा- मैं जितना सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकूँ उतना प्रयत्न करता हूँ। मुझे अपनी स्थिति की चिंता नहीं है। जो कार्य मैं कर नहीं सकता उसके लिए पछतावा भी नहीं है।
मैं होनी को स्वीकार कर सकता हूँ। अभिशाप को वरदान मान लिया। बीमारी होते ही मैंने अपनी सीमित उम्र मान कर कार्य पर ध्यान दिया। इससे मेरा मष्तिस्क एकाग्र हुआ व कार्य में तेजी आई। बीमारी के पूर्व मेरा आज की उपेक्षा अच्छा नहीं था। तब मैं बोर होता था अव्यवस्थित जीवन जी रहा था। अब मैं पहले की उपेक्षा अधिक अच्छा जीवन जीता हूँ एवं प्रशन्न हूँ।
डॉक्टरों ने तो कह दिया था मैं 25 वर्ष से अधिक नहीं जी सकूंगा। जब बीमारी का पता चला मैं 21 वर्ष का था ,उनके अनुसार मैं 4 वर्ष और जी सकता था। लेकिन आज 30 वर्ष हो गए ,मैं अपना कार्य कर रहा हूँ। शायद यह मेरे आत्मविश्वास का चमत्कार है। तभी तो साक्षात्कार का शीर्षक था ,ईश्वर के हाथ में डोर नहीं। फिर आखिर यह डोर किसके हाथ में है ? हमारी डोर हमारे हाथों में है। यह है आत्मविश्वास।
दोस्तों ,देखो ! उनकी सोंच। जब हॉकिंग अपनी बीमारी के उपरांत इतना कार्य कर सकते हैं तो आप और हम क्यों नहीं कर सकते हैं ? क्या आपकी समस्या हॉकिंग से बड़ी है ? कम से कम आपको बायोलॉजी ,आपका शरीर साथ दे रहा है। उन्होंने बायोलॉजी को वश में किया -आत्मविश्वास के सहारे।
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